साल 2006 में हुए निठारी कांड में सुरेंद्र कोली को बरी करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सु्प्रीम कोर्ट सहमत हो गया है. न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पीड़ितों में से एक के पिता पप्पू लाल द्वारा दायर अपील पर नोटिस जारी किया है. उत्तर प्रदेश सरकार और अभियुक्तों से जवाब तलब किया है.
पीड़िता पिता पप्पू लाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा, रूपेश कुमार सिन्हा और सतरूप दास ने कहा कि हाई कोर्ट ने अपने निष्कर्ष में गलती की है. इस मामले में मोनिंदर सिंह पंढेर को सत्र अदालत ने बरी कर दिया था. वहीं सुरेंद्र कोली को 28 सितंबर 2010 को मौत की सजा दी गई थी. लेकिन बाद में हाई कोर्ट ने कोली को इस सजा से बरी कर दिया था. सीबीआई ने इस मामले की जांच की थी.
पप्पू लाल ने अपनी याचिका में केवल कोली को पक्षकार बनाया है. अपील में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने आश्चर्यजनक रूप से सभी मेडिकल सबूतों और मजिस्ट्रेट के सामने दोनों के अपराध कबूल करने के बयान भी अस्वीकार कर दिए. इन उपरोक्त सबूतों के साथ अभियोजन पक्ष ने परिस्थिति जन्य साक्ष्य सिद्ध किए थे, तभी ट्रायल कोर्ट ने उसको सजा सुनाई. लेकिन हाईकोर्ट ने इनको दरकिनार कर दिया था.
उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सुरेंद्र कोली से जवाब मांगा है और रजिस्ट्री को ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट से रिकॉर्ड मंगाने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ता की वकील सीनियर एडवोकेट गीता लूथरा ने कोर्ट को बताया कि निठारी में 2005 से 2006 के बीच ये घटनाएं हुई थी. इनमें पहले बच्चे और लड़कियां अचानक गायब होने लगीं. फिर दिसंबर 2006 में उनके कंकाल अभियुक्तों और फिर दोषी ठहराए गए पंधेर के घर के पीछे से बरामद हुए.
इस अपराध में घरेलू सहायक सुरेंद्र कोली सहयोगी था. सीबीआई ने इस मामले की जांच की थी. इसके बाद इन सभी मामलों में सुरेंद्र कोली को अपहरण, हत्या, रेप और सबूत छुपाने का अभियुक्त बनाया. पंधेर को बच्चों और लड़कियों की तस्करी कर उन्हें वेश्यावृत्ति के धंधे में भेजने का आरोपी बनाया. जुलाई 2017 में सीबीआई की विशेष अदालत में जज पवन कुमार तिवारी की कोर्ट ने दोनों को पिंकी सरकार की हत्या का दोषी मानते हुए सजा सुनाई.
इससे पहले साल 2009 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रिंपा हालदार हत्याकांड में कोली को दोषी माना था. लेकिन पंधेर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. इसके खिलाफ कोली की अपील सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में और रिव्यू 2014 में खारिज कर दी थी. हाईकोर्ट में साल 2015 में तब के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पीठ ने सुरेंद्र कोली की दया याचिका के निपटारे में हो रही देरी के आधार पर सजा में राहत दी थी.
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